९० कुंडलियाँ
कुण्डलियाकार: महावीर उत्तरांचली
(1.) ऐसी चली बयार
(2.) कैसा यह दस्तूर
कैसा यह दस्तूर है, कैसा खेल अजीब।
सीधे साधे लोग ही, चढ़ते यहाँ सलीब।
चढ़ते यहाँ सलीब, जहर मिलता सच्चों को।
बुरे करें सब ऐश, कष्ट देते अच्छों को।
महावीर कविराय, बड़ा है सबसे पैसा।
इसके आगे टूट, चुका सच कैसा कैसा।
(3.) ममता ने संसार को
ममता ने संसार को, दिया प्रेम का रूप।
माँ के आँचल में खिली, सदा नेह की धूप।
सदा नेह की धूप, प्यार का ढंग निराला।
भूखी रहती और, बाँटती सदा निवाला।
महावीर कविराय, दिया जब दुःख दुनिया ने।
सिर पर हाथ सदैव, रखा माँ की ममता ने।
(4.) ईश्वर का यह शाप
ईश्वर का यह शाप क्यों, अब तक अप-टू-डेट।
हर युग में खाली रहा, निर्धन का ही पेट।
निर्धन का ही पेट, राम की लीला न्यारी।
सोये पीकर नीर, सड़क पर क्यों खुद्दारी।
महावीर कविराय, घाट का रहा न घर का।
भूखे पेट गरीब, न पूजन हो ईश्वर का।
(5.) पहचानो इस सत्य को
पहचानो इस सत्य को, मिट जायेगी साख।
जीवन दर्शन बस यही, इक मुट्ठी भर राख।
इक मुट्ठी भर राख, कहें सब ज्ञानी ध्यानी।
मगर आज भी सत्य, नहीं समझे अज्ञानी।
महावीर कविराय, बात बेशक मत मानो।
निकट खड़ी है मृत्यु, सत्य कड़वा पहचानो।
(6.) राधा-रानी कृष्ण की
राधा-रानी कृष्ण की, थी बचपन की मीत
मीरा ने भी सुन लिया, बंसी का संगीत
बंसी का संगीत, हरे सुध-बुध तन-मन की
मुरलीधर गोपाल, खबर तो लो जोगन की
महावीर कविराय, अमर यह प्रेम कहानी
मीरा बनी मिसाल, सुनो ओ राधा-रानी
(7.) सावन के बदरा घिरे
सावन के बदरा घिरे, सखी बिछावे नैन
रूप सलोना देखकर, साजन हैं बेचैन
साजन हैं बेचैन, भीग न जाये सजनी
ढलती जाये साँझ, बढे हरेक पल रजनी
महावीर कविराय, होश गुम हैं साजन के
मधुर मिलन के बीच, घिरे बदरा सावन के
(8.) मस्ती का त्यौहार
मस्ती का त्यौहार है, खिली बसंत बहार
फूलों की मकरंद से, सब पर चढ़ा ख़ुमार
सब पर चढ़ा ख़ुमार, आज है यारो होली
सब गाएं मधुमास, मित्रगण करें ठिठोली
महावीर कविराय, ख़ुशी तो दिल में बस्ती
निरोग जीवन हेतु, लाभदायक है मस्ती
(9.) आटा गीला हो गया
आटा गीला हो गया, क्या खाओगे लाल
बहुत तेज इस दौर में, महंगाई की चाल
महंगाई की चाल, सिसक रहे सभी निर्धन
कभी न भरता पेट, बना है शापित जीवन
महावीर कविराय, भूख बैरन ने काटा
जनमानस लाचार, हो गया गीला आटा
(10.) नेकी कर जूते मिलें
नेकी कर जूते मिलें, यह कलयुग की रीत
नफरत ही बाकी बची, भूल गए सब प्रीत
भूल गए सब प्रीत, गौण हैं रिश्ते-नाते
माया बनी प्रधान, उसे सब गले लगाते
महावीर कविराय, लाख कीजै अनदेखी
पर भूले से यार, कभी तो कर लो नेकी
(11.) कुण्डलिया के छंद में
कुण्डलिया के छंद में, कहता हूँ मैं बात
(12.) जिसमें सुर-लय-ताल है
जिसमें सुर-लय-ताल है, कुण्डलिया वह छंद
कुण्डलियाकार: महावीर उत्तरांचली
(1.) ऐसी चली बयार
मानव दानव बन गया, ऐसी चली बयार।
चहूँ ओर आतंक की, मचती हाहाकार।
मचती हाहाकार, धर्म, मजहब को भूले।
बम, गोला, बारूद, इसी के दम पर फूले।
महावीर कविराय, बन रहे मानव दानव।
चला यदि यही दौर, बचेगा कैसे मानव।
चहूँ ओर आतंक की, मचती हाहाकार।
मचती हाहाकार, धर्म, मजहब को भूले।
बम, गोला, बारूद, इसी के दम पर फूले।
महावीर कविराय, बन रहे मानव दानव।
चला यदि यही दौर, बचेगा कैसे मानव।
(2.) कैसा यह दस्तूर
कैसा यह दस्तूर है, कैसा खेल अजीब।
सीधे साधे लोग ही, चढ़ते यहाँ सलीब।
चढ़ते यहाँ सलीब, जहर मिलता सच्चों को।
बुरे करें सब ऐश, कष्ट देते अच्छों को।
महावीर कविराय, बड़ा है सबसे पैसा।
इसके आगे टूट, चुका सच कैसा कैसा।
(3.) ममता ने संसार को
ममता ने संसार को, दिया प्रेम का रूप।
माँ के आँचल में खिली, सदा नेह की धूप।
सदा नेह की धूप, प्यार का ढंग निराला।
भूखी रहती और, बाँटती सदा निवाला।
महावीर कविराय, दिया जब दुःख दुनिया ने।
सिर पर हाथ सदैव, रखा माँ की ममता ने।
(4.) ईश्वर का यह शाप
ईश्वर का यह शाप क्यों, अब तक अप-टू-डेट।
हर युग में खाली रहा, निर्धन का ही पेट।
निर्धन का ही पेट, राम की लीला न्यारी।
सोये पीकर नीर, सड़क पर क्यों खुद्दारी।
महावीर कविराय, घाट का रहा न घर का।
भूखे पेट गरीब, न पूजन हो ईश्वर का।
(5.) पहचानो इस सत्य को
पहचानो इस सत्य को, मिट जायेगी साख।
जीवन दर्शन बस यही, इक मुट्ठी भर राख।
इक मुट्ठी भर राख, कहें सब ज्ञानी ध्यानी।
मगर आज भी सत्य, नहीं समझे अज्ञानी।
महावीर कविराय, बात बेशक मत मानो।
निकट खड़ी है मृत्यु, सत्य कड़वा पहचानो।
(6.) राधा-रानी कृष्ण की
राधा-रानी कृष्ण की, थी बचपन की मीत
मीरा ने भी सुन लिया, बंसी का संगीत
बंसी का संगीत, हरे सुध-बुध तन-मन की
मुरलीधर गोपाल, खबर तो लो जोगन की
महावीर कविराय, अमर यह प्रेम कहानी
मीरा बनी मिसाल, सुनो ओ राधा-रानी
(7.) सावन के बदरा घिरे
सावन के बदरा घिरे, सखी बिछावे नैन
रूप सलोना देखकर, साजन हैं बेचैन
साजन हैं बेचैन, भीग न जाये सजनी
ढलती जाये साँझ, बढे हरेक पल रजनी
महावीर कविराय, होश गुम हैं साजन के
मधुर मिलन के बीच, घिरे बदरा सावन के
(8.) मस्ती का त्यौहार
मस्ती का त्यौहार है, खिली बसंत बहार
फूलों की मकरंद से, सब पर चढ़ा ख़ुमार
सब पर चढ़ा ख़ुमार, आज है यारो होली
सब गाएं मधुमास, मित्रगण करें ठिठोली
महावीर कविराय, ख़ुशी तो दिल में बस्ती
निरोग जीवन हेतु, लाभदायक है मस्ती
(9.) आटा गीला हो गया
आटा गीला हो गया, क्या खाओगे लाल
बहुत तेज इस दौर में, महंगाई की चाल
महंगाई की चाल, सिसक रहे सभी निर्धन
कभी न भरता पेट, बना है शापित जीवन
महावीर कविराय, भूख बैरन ने काटा
जनमानस लाचार, हो गया गीला आटा
(10.) नेकी कर जूते मिलें
नेकी कर जूते मिलें, यह कलयुग की रीत
नफरत ही बाकी बची, भूल गए सब प्रीत
भूल गए सब प्रीत, गौण हैं रिश्ते-नाते
माया बनी प्रधान, उसे सब गले लगाते
महावीर कविराय, लाख कीजै अनदेखी
पर भूले से यार, कभी तो कर लो नेकी
(11.) कुण्डलिया के छंद में
कुण्डलिया के छंद में, कहता हूँ मैं बात
अंत समय तक ही चले, यह प्यारी सौगात
यह प्यारी सौगात, छंद यह सबसे न्यारा
दोहा-रोला एक, मिलाकर बनता प्यारा
महावीर कविराय, लगे सुर पायलिया के
अंतरमन में तार, बजे जब कुण्डलिया के
(12.) जिसमें सुर-लय-ताल है
जिसमें सुर-लय-ताल है, कुण्डलिया वह छंद
सबसे सहज-सरल यही, छह चरणों का बंद छह
चरणों का बंद, शुरू दोहे से होता
चरणों का बंद, शुरू दोहे से होता
रोला का फिर रूप, चार चरणों को धोता
महावीर कविराय, गयेता अति है इसमें
हो अंतिम वह शब्द, शुरू करते हैं जिसमे
(13.) छह ऋतू बारह मास हैं
छह ऋतू बारह मास हैं, ग्रीष्म, शरद, बरसात
स्वच्छ रहे पर्यावरण, सुबह-शाम, दिन-रात
सुबह-शाम, दिन-रात, न कोई करे प्रदूषण
वसुंधरा अनमोल, मिला सुन्दर आभूषण
जिसमे हो आनंद, सुधा समान है वह ऋतू
महावीर कविराय, मिले ऐसी अब छह ऋतू
(14.) नदिया में जीवन बहे
नदिया में जीवन बहे, जल से सकल जहान
मोती बने न जल बिना, जीवन रहे न धान
जीवन रहे न धान, रहीमदास बोले थे
अच्छी है यह बात, भेद सच्चा खोले थे
महावीर कविराय, न कचरा कर दरिया में
जल की कीमत जान, बहे जीवन नदिया में
(15.) घिन लागे उल्टी करे
घिन लागे उल्टी करे, ठीक न होवे पित्त
ज़ख़्म दिए आतंक ने, दुखी देश का चित्त
दुखी देश का चित्त, क़त्ल रिश्तों का करते
कभी धर्म के नाम, कभी जाति-ज़हर भरते
महावीर कविराय, बात कड़वी पिन लागे
सिस्टम ज़िम्मेदार, आचरण से घिन लागे
(16.) बूढ़ा पीपल गांव का
बूढ़ा पीपल गांव का, रोता है दिन, रैन
शहरों के विस्तार से, उजड़ गया सुख, चैन
उजड़ गया सुख, चैन, कंकरीटों के जंगल
मचती भागम-भाग, कारखानों के दंगल
महावीर कविराय, बना है सोना, पीतल
युवा हुआ बरबाद, तड़पता बूढ़ा, पीपल
(17.) मायामृग भटका किये
माया मृग भटका किये, जब-जब मेरे पास
इच्छाओं में डूबकर, तब-तब रहा हतास
तब-तब रहा हतास, मिटी न मिटे यह तृष्णा
आदिम युग की प्यास, राधिका बिन ज्यों कृष्णा
महावीर कविराय, लगी झुरने यह काया
बूढ़ा हुआ शरीर, पर न मिटी मोह माया
(18.) तू-तू, मैं-मैं हो गई
तू-तू, मैं-मैं हो गई, बात बनी गंभीर
चलने लगे विवेक पर, लोभ-मोह के तीर
लोभ-मोह के तीर, पहेली तब क्या बूझे
जब न बचे विवेक, विकल्प न कोई सूझे
महावीर कविराय, ज़रा भी मत कर टैं-टैं
वरना होगी व्यर्थ, करी जो तू-तू, मैं-मैं
(19.) रब तो है अहसास भर
रब तो है अहसास भर, नहीं धूप या छाँव
वो तो घट-घट में बसा, नहीं हाथ वा पाँव
नहीं हाथ वा पाँव, निराकार उसे जानो
कह गए दयानन्द, बात वेदों की मानो
महावीर कविराय, पता यह सच सबको है
लाख करों इंकार, मगर जग में रब तो है
(20.) काटा पेड़ हरा-भरा
काटा पेड़ हरा-भरा, आँगन में दीवार
भाई-भाई लड़ रहे, मांग रहे अधिकार
मांग रहे अधिकार, धर्म संकट है भारी
रिश्ते-नाते गौण, गई सबकी मति मारी
महावीर कविराय, हो रहा सबको घाटा
लेकिन क्या उपचार, पेड खुद ही जो काटा
(21.) जो भी देखे प्यार से
जो भी देखे प्यार से, दिल उस पर कुर्बान
जग में है यह प्रेम ही, सब खुशियों की खान
सब खुशियों की खान, करो दिलबर की पूजा
है प्रभु का वह रूप, नहीं प्रेमी-सम दूजा
महावीर कविराय, तनिक अब वो भी देखे
दे दो उस पर जान, प्यार से जो भी देखे
(22.) सारी भाषा बोलियाँ
सारी भाषा बोलियाँ, विद्या का है रूप
विश्व में चहूँ ओर ही, खिली ज्ञान की धूप
खिली ज्ञान की धूप, रूप है इसका न्यारा
अक्षर ने हर छोर, किया ऐसा उजियारा
महावीर कविराय, विज्ञानं नहीं तमाशा
एक जगह अब देख, यंत्र में सारी-भाषा
(23.) जीवन हो बस देश हित
जीवन हो बस देश हित, सबका हो कल्याण
"महावीर" चारों तरफ, चलें प्यार के वाण
चलें प्यार के वाण, बने अच्छे संस्कारी
उत्तम शासन-तंत्र, बने अच्छे नर-नारी
देश-भक्त की राय, फूल-सा मन उपवन हो
हर विधि हो कल्याण, देश हित हर जीवन हो
(24.) कूके कोकिल बाग़ में
कूके कोकिल बाग़ में, नाचे सम्मुख मोर
मनोहरी पर्यावरण, आज बना चितचोर
आज बना चितचोर, पवन शीतल मनभावन
मृत्युलोक में मित्र, स्वर्ग-सा लगता जीवन
महावीर कविराय, युगल प्रेमी मन बहके
काश! डाल पे आज, ह्रदय कोकिल बन कूके
(25.) रंगों का त्यौहार है
रंगों का त्यौहार है, उड़ने लगा अबीर
प्रेम रंग गहरा चढ़े, उतरे न महावीर
उतरे न महावीर, सजन मारे पिचकारी
सजनी लिए गुलाल, खड़ी कबसे बेचारी
प्रेम रंग के बीच, खेल चले उमंगों का
जग में ऐसा पर्व, नहीं दूजा रंगों का
(26.) होंठों पर है रागनी
होंठों पर है रागनी, मन गाये मल्हार
बरसे यूँ बरसों बरस, मधुरिम-मधुर-फुहार
मधुरिम-मधुर-फुहार, प्रीत के राग-सुनाती
बहते पानी संग, गीत नदिया भी गाती
महावीर कविराय, ताल बंधी सांसों पर
जीवन के सुर सात, गुनगुनाते होंठों पर
(27.) पोथी-पत्री बाँचकर
पोथी-पत्री बाँचकर, होवे कौन सुजान
शब्द प्रेम के जो कहे, उसको ज्ञानी मान
उसको ज्ञानी मान, दिलों में घर कर जाता
मानव की क्या बात, जानवर स्नेह लुटाता
महावीर कविराय, बात है सारी थोथी
हिया न उपजे प्रेम, व्यर्थ है पत्री-पोथी
(28.) आई जिम्मेदारियां
आई जिम्मेदारियां, काँप गए नादान
है यह टेड़ी खीर पर, जो खाए बलवान
जो खाए बलवान, शक्ति उसको मिलती है
माने कभी न हार, मुक्ति उसको मिलती है
महावीर कविराय, काम मुश्किल है भाई
भाग गया वो वीर, मुसीबत जिस पर आई
(29.) मन में हाहाकार
मन में हाहाकार है, जीना क्यों बेकार
कर पैदा सच्ची लगन, तो जीवन साकार
तो जीवन साकार, व्यर्थ न जलाओ जी को
प्रीतम अगर कठोर, भूल जा तू भी पी को
महावीर कविराय, प्यार मत ढूंढों तन में
रंग चढ़ेगा और, लगन सच्ची यदि मन में
(30.) मरते-खपते कट गए
मरते-खपते कट गए, दुविधा में दिन, रैन
जीवन के दो पल बचे, ले ले अब तो चैन
ले ले अब तो चैन, साँस जाने कब उखड़े
कर कुछ अच्छे काम, छोड़ दे लफड़े-झगड़े
महावीर कविराय, राम की माला जपते
बहुत जिए हम मित्र, कल तलक मरते-खपते
(31.) आज़ादी पाई कहाँ
आज़ादी पाई कहाँ, देश बना अँगरेज़
क्यों न रंग देशी चढ़े, रो रहे रंगरेज़
रो रहे रंगरेज़, न पूछे बाबू कोई
निज भाषा बिन ज्ञान, व्यर्थ में दुर्गति होई
महावीर कविराय, चार सू है बरबादी
भाषा का अपमान, मिली कैसी आज़ादी
(32.) बात न कोई मानता
बात न कोई मानता, झूठ झाड़ते लोग
बेशर्मी से रात-दिन, दाँत फाड़ते लोग
दाँत फाड़ते लोग, कष्ट देके खुश रहते
इन लोगों को यार, बोझ धरती का कहते
महावीर कविराय, रूह भी इनकी सोई
भले कहो तुम लाख, मानता बात न कोई
(33.) राजनीति में आ गई
राजनीति में आ गई, महावीर अब खोट
नोट की चोट पे सभी, माँग रहे हैं वोट
माँग रहे हैं वोट, गिरी सबकी खुद्दारी
व्यवस्था हुई भ्रष्ट, दादागिरी है सारी
महावीर कविराय, गिरावट अर्थनीति में
गलत चयन आधार, खोट यूँ राजनीति में
(34.) खेतों में ज्यों आप ही
खेतों में ज्यों आप ही, फैली खरपतवार
इस धरा में ग़रीब यूँ, मिलते हैं सरकार
मिलते हैं सरकार, कहूँ क्या किस्मत खोटी
मुश्किल से दो जून, मिले ग़रीब को रोटी
महावीर कविराय, मिली हमें यह देह क्यों
हम हैं खरपतवार, उगे खुद खेतों में ज्यों
(35.) गल रही ओजोन परत
गल रही ओजोन परत, प्रगति बनी अभिशाप
वक्त अभी है चेतिए, पछतायेंगे आप
पछतायेंगे आप, साँस घुट्टी जाएगी
पृथ्वी होगी नष्ट, जान क्या रह पाएगी
महावीर कविराय, समय पर जाओ संभल
कीजै कुछ उपचार, ओजोन परत रही गल
(36.) अनपढ़ सदा दुखी रहा
अनपढ़ सदा दुखी रहा, कहे कवि महावीर
पढा-लिखा इंसान ही, लिखता है तक़दीर
लिखता है तक़दीर, अलिफ, बे को पहचानो
क, ख, ग को रखो याद, विदेशी भाषा जानो
धरती से ब्रह्माण्ड, ज़मानां पहुंचा पढ़-पढ़
जागो बरखुरदार, रहो न आज से अनपढ़
(37.) उत्साहित हैं गोपियाँ
उत्साहित हैं गोपियाँ, नाचे मन में मोर
रूप-रंग श्रृंगार का, कौन सखी चितचोर
कौन सखी चितचोर, पूछ रही हैं गोपियाँ
करती है हुड़दंग, ग्वाल-बाल की टोलियाँ
महावीर कविराय, कृष्ण जहाँ समाहित हैं
देह अलौकिक गंध, सभी जन उत्साहित हैं
(38.) गोरी इतराकर कहे
गोरी इतराकर कहे, प्रीतम मेरा चाँद
अजर-अमर आभा रहे, कभी पड़े ना मांद
कभी पड़े ना मांद, नज़र न लगाओ कोई
प्रीतम है मासूम, करीब न आओ कोई
महावीर कविराय, न कोई कर ले चोरी
तुझे छिपा लूँ चाँद, कहे इतराकर गोरी
(39.) क्यों पगले डरता यहाँ
क्यों पगले डरता यहाँ, काल सभी को खाय
यह तो गीता सार है, जो आए सो जाय
जो आए सो जाय, बात है बिलकुल सच्ची
कहें सभी विद्वान, साँस की डोरी कच्ची
महावीर कविराय, समय से पहले मरता
मौत है कटू सत्य, बता क्यों पगले डरता
(40.) पंछी बेशक कैद है
पंछी बेशक कैद है, पाँव पड़ी ज़ंजीर
लेकिन मन को बांधकर, कब रखा महावीर
कब रखा महावीर, नाप लेता जग पल में
जब भी जिया उदास, घूमता बीते कल में
कहे कवि खरे बोल, ह्रदय करता है धक-धक
दिल तो है आज़ाद, कैद हो पंछी बेशक
(41.) गीता में श्री कृष्ण ने
गीता में श्री कृष्ण ने, बात कही गंभीर
औरों से दुनिया लड़े, लड़े स्वयं से वीर
लड़े स्वयं से वीर, जीत पाया जो मन से
वह नर सच्चा वीर, मुक्त हो हर बंधन से
अवगुण कर सब दूर, निर्देश यह गीता में
(42.) वन में हरियाली बहुत
वन में हरियाली बहुत, मारे बाघ दहाड़
गोद हिमालय की बसे, चारों तरफ पहाड़
चारों तरफ पहाड़, शुद्ध है आबो-दाना
ऊँची भरे उड़ान, हृदय पंछी दीवाना
महावीर कविराय, घुले रस जन-जीवन में
शहरों में है शोर, असीम शांति है वन में
(43.) क्यों मेरी लाडो बड़ी
क्यों मेरी लाडो बड़ी, चिंतित बूढ़ा बाप
कैसे जुटे दहेज अब, सुता जन्म अभिशाप
सुता जन्म अभिशाप, पराया धन है बेटी
जाएगी परदेश, खाट पे चिंता लेटी
महावीर कविराय, गोद में खेली तेरी
कोई मिले सुपात्र, बड़ी लाडो क्यों मेरी
(43.) अति सुन्दर गोरी लगे
अति सुन्दर गोरी लगे, ज्यों-ज्यों उड़ते केश
मधुर मिलन की चाह में, उपजे नेह विशेष
उपजे नेह विशेष, पिया से होंगी बातें
पलक झपकते देख, बीत जाएँगी रातें
महावीर कविराय, प्यार है एक समंदर
जितना इसमें डूब, लगे उतना अति सुन्दर
(44.) हैं कवियों में कवि अमर
हैं कवियों में कवि अमर, स्वामी तुलसीदास
"राम चरित मानस" रचा, राम भक्त ने ख़ास
राम भक्त ने ख़ास, आज भी सबको भाता
रिश्तों का यह पाठ, आज भी हमें पढाता
महावीर कविराय, बड़ा सच यह सदियों में
स्वामी तुलसीदास, श्रेष्ठ हैं सब कवियों में
(45.) स्वामी तुलसीदास हैं
स्वामी तुलसीदास हैं, सब संतों के संत
राम भक्ति है वह किरण, जाको कोय न अंत
जाको कोय न अंत, अमर ऋषियों की वाणी
भरा पड़ा है ज्ञान, नित्य ही पढ़ते प्राणी
महावीर कविराय, अनेकों जग में नामी
रामजी का प्रताप, अजर-अमर हैं स्वामी
(46.) दौलत दुःख का मूल है
दौलत दुःख का मूल है, समझ गए जो लोग
उनके मन संतोष धन, रहते वही निरोग
रहते वही निरोग, मोहमाया को छोडो
प्यारा प्रभु का नाम, राम से नाता जोड़ो
महावीर कविराय, विकल्प खोजिए सुख का
याद रखो यह बात, मूल है दौलत दुःख का
(47.) फूलों की मकरंद पे
फूलों की मकरंद पे, रीझत है अलि पुञ्ज
राधा-हरि के रास पर, झूमत सारा कुञ्ज
झूमत सारा कुञ्ज, गोपियाँ शोर मचाएँ
ओ राधा के श्याम, हमें क्यों नाच नचाएँ
महावीर कविराय, बयार चली झूलों की
भौंरे हुए विभोर, हुई वर्षा फूलों की
(48.) बंसी बाजे कृष्ण की
बंसी बाजे कृष्ण की, भूल गई सब काज
राधे शरमा कर कहे, आवत मोहे लाज
आवत मोहे लाज, मिलन की चाह जगी है
रुके न रुकते पाँव, बड़ी यह कठिन घडी है
महावीर कविराय,होंठ पे सुर जब साजे
रोके खुद को कौन, कृष्ण की बंसी बाजे
(49.) कौरव माने कब नियम
कौरव माने कब नियम, पहन विजय का ताज
भीमसेन तू मार दे, दुर्योधन को आज
दुर्योधन को आज, कसम क्यों अपनी भूले
रचा महासंग्राम, वीर की छाती फूले
महावीर कविराय, रार जब मन में ठाने
छल-बल से ही मार, नियम कब कौरव माने
(50.) करवट बदले दिन गया
करवट बदले दिन गया, करवट बदले रात
एक-एक दिन गिन रहा, काल लगाये घात
काल लगाये घात, मृत्यु से कोई जीता
आया है सो जाय, कहे गिरधर की गीता
महावीर कविराय, करो पाप न ऐ पगले
काल का कुछ न ठीक, कहाँ यह करवट बदले
(51.) जब-जब दुर्घटना घटे
जब-जब दुर्घटना घटे, क्षति तन की तब होय
मगर हिया की चोट को, समझ न पाये कोय
समझ न पाये कोय, संसार तन को देखे
अंतर्मन से मात्र, दिलदार मन को देखे
महावीर कविराय, प्यार बढ़ता है तब-तब
प्रेमीजनों के बीच, घटे दुर्घटना जब-जब
(52.) कविता ने की ख़ुदकुशी
कविता ने की ख़ुदकुशी, गीत बना व्यापार
फिल्मों के इस दौर में, शब्द हुआ लाचार
शब्द हुआ लाचार, मात्र व्यवसायिक इंकम
बिकता हाथों-हाथ, अर्थात गुणवत्ता कम
महावीर कविराय, नुक्स ढूंढे सविता ने
छोड़ पुराने गीत, ख़ुदकुशी की कविता ने
(53.) शरमा जाए क्यों हवा
शरमा जाए क्यों हवा, छू गोरी के अंग
गोरी झूले झूलना, आज पिया के संग
आज पिया के संग, हवा से करती बातें
संग रहे जो आप, कटेंगी हिलमिल रातें
महावीर कविराय, पिया भी इतरा जाए
गोरी की लज्जा देख, हवा भी शरमा जाये
(54.) डाली जितनी हो घनी
डाली जितनी हो घनी, उतनी ही झुक जाय
छाँव घनेरी देखकर, थका पथिक रुक जाय
थका पथिक रुक जाय, बड़ी पहुंचाए राहत
घर में आये अथिति, मेजबान करे स्वागत
महावीर कविराय, बनो वृक्षों के माली
सबको दे आनन्द, घनी हो जितनी डाली
(55.) नेकी तुम करते चलो
नेकी तुम करते चलो, जब तक घट में जान
अच्छे कर्मों से बने, अमर-अमिट पहचान
अमर-अमिट पहचान, सत्कर्म नेह लुटाते
अंत में बुरे कर्म, कष्ट अपार पहुंचाते
महावीर कविराय, करो न कभी अनदेखी
संग सभी के आज, चलो करते तुम नेकी
(56.) दर-दर भटका यार मैं
दर-दर भटका यार मैं, पाया नहीं सकून
महावीर पानी किया, तृष्णाओं ने ख़ून
तृष्णाओं ने ख़ून, मरीचिका भटकाए
तपता रेगिस्तान, प्यास हरदम तड़पाए
महावीर कविराय, दास इच्छा का अटका
रहा सदा बेचैन, इसलिए दर-दर भटका
(57.) यूँ तो की है शा'इरी
यूँ तो की है शा'इरी, हुआ न इक दीवान
काम काव्य का मित्रवर, खेल नहीं आसान
खेल नहीं आसान, ग़ज़ल कहना है मुश्किल
ज्यों दरिया के संग, उलट बहना है मुश्किल
महावीर कविराय, अजब अटखेली-सी है
बड़ा कठिन है सिन्फ़, शा'इरी यूँ तो की है
(58.) ममता मायाजाल है
ममता मायाजाल है, हर बंधन तू तोड़
मोह रूप अज्ञान का, सुख-दुःख सारे छोड़
सुख-दुःख सारे छोड़, हृदय को कर बैरागी
इच्छाओं का मार, वासना इससे जागी
महावीर कविराय, जान तुझमे क्या क्षमता
सुख-दुःख सारे छोड़, मोहमाया है ममता
(59.) लालच का मुख देखिये
लालच का मुख देखिये, हर पल नीचा होय
फलदायी हो वृक्ष क्यों, कांटें जब थे बोय
कांटें जब थे बोय, एक भी हुआ न चंगा
मुक्ति नहीं आसान, नहाओ चाहे गंगा
महावीर कविराय, थामिये दामन सच का
झूठ के नहीं पांव, बुरा है फल लालच का
(60.) मंदिर-मस्जिद त्यागकर
मंदिर-मस्जिद त्यागकर, धर्म बनाओ प्यार
रह जाये सब कुछ यहाँ, झगड़ा है बेकार
झगड़ा है बेकार, रंग लहू का है एक
ज़रा अक्ल से सोच, रचियता कैसे अनेक
महावीर कविराय, छोड़ दो यारों हर जिद
बात रखो यह याद, एक है मंदिर-मस्जिद
(61.) ऊपर वाला एक है
ऊपर वाला एक है, पूजा रूप अनेक
मानवता सबसे बड़ी, इसे न पूजे एक
इसे न पूजे एक, हाय कैसी लाचारी
दंगा, हत्या, ख़ून, कौम की ज़िम्मेदारी
महावीर कविराय, सभी को मिले निवाला
बैर आपसी भूल, एक है ऊपर वाला
(62.) हरदम गिरगिट की तरह
हरदम गिरगिट की तरह, दुनिया बदले रंग
थोड़ा-सा तू भी बदल, अब जीने का ढंग
अब जीने का ढंग, तंग है सीधा-सादा
जो सच्चा इंसान,बुरा वो उतना ज़्यादा
महावीर कविराय, करे जो ज़्यादा गिटपिट
बन जा उसके साथ, हमेशा तू भी गिरगिट
(63.) पापी पंछी उड़ गया
पापी पंछी उड़ गया, देह जले दिन-रात
पेड़ खड़ा शमशान में, कहे अनोखी बात
कहे अनोखी बात, रूह भी दिक्क्त पाये
भटके सालों-साल, एक पल चैन न आये
महावीर कविराय, बजी जब अंतिम बंसी
देह जली शमशान, उड़ गया पापी पंछी
(64.) जिनको भी अपना कहा
जिनको भी अपना कहा, वही दे गए घात
कदम-कदम संसार में, खाई हमने मात
खाई हमने मात, भरोसा कभी न करना
अौरत हो या मर्द, एक सा पर्दा रखना
महावीर कविराय, ग़ैर न समझिए उनको
कर उनका सम्मान, कहो अपना तुम जिनको
(65.) दुनिया में आदर्श है
दुनिया में आदर्श है, अपना हिन्दुस्तान
अनेकता में एकता, यह अपनी पहचान
यह अपनी पहचान, अनेक धर्म-भाषाएँ
जीवित यहाँ जनाब, पुरातन परम्पराएँ
महावीर कविराय, मात छवि है नदिया में
भ्रात-सखा है विश्व, सन्देश यह दुनिया में
(66.) मालिक सबका एक है
मालिक सबका एक है, सब बंधे इक चैन
हिन्दू-मुस्लिम भी यहाँ, सिख, बौद्ध और जैन
सिख, बौद्ध और जैन, हृदय है भारतवासी
इक-दूजे से प्यार, प्रेम के सब अभिलाषी
महावीर कविराय, प्रेम है हर मज़हब का
पावन यह सन्देश, एक है मालिक सबका
(67.) दीवाने-ग़ालिब पढ़ो
दीवाने-ग़ालिब पढ़ो, महावीर यूँ आप
उर्दू, अरबी, फ़ारसी, हिंदी करे मिलाप
हिंदी करे मिलाप, सभी का मिलन सुहाना
मिर्ज़ा के हों शेर, बने यह जग दीवाना
हैं कवि के यह बोल, चिराग़ तले परवाने
आँखें बनी जुबान, पढ़े सब कुछ दीवाने
(68.) दो पल ही खिलना यहाँ
दो पल ही खिलना यहाँ, फिर सब माटी-धूल
महावीर यह ज़िंदगी, है गुलाब का फूल
है गुलाब का फूल, खिले तो सुन्दर लागे
भौरे देते जान, अरमान दिल में जागे
सच्चे कवि के बोल, अंत, माटी में मिलना
इंसां हो या फूल, यहाँ दो पल ही खिलना
(69.) अच्छे कल की चाह में
अच्छे कल की चाह में, फूँक दिया क्यों आज
जीवन तो है आज में, कल में यम का राज
कल में यम का राज, सोच मत पगले ज़्यादा
काज सफल हों आज, अटल हो अगर इरादा
महावीर कविराय, ज़िन्दगी है दो पल की
है सुख से भरपूर, कामना अच्छे कल की
(70.) मालिक मकान कौन है
मालिक मकान कौन है, देह किराएदार
समय अभी है जान ले, मालिक वो सरकार
मालिक वो सरकार, साँस है आनी-जानी
किस पर तुझको नाज़, सभी कुछ तो है फ़ानी
महावीर कविराय, एक है तेरा ख़ालिक़
साथ न जाए देह, कौन है मकान मालिक
(71.) माँ का सर पर हाथ यदि
माँ का सर पर हाथ यदि, हो मुश्किल आसान
ज्ञान दो मुझे शारदे, हो जाऊँ विद्वान
हो जाऊँ विद्वान, करूँ हिंदी की सेवा
प्रसाद सम है ज्ञान, रोज़ मैं खाऊं मेवा
महावीर कविराय, हिया में जिसने झाँका
उसको आशीर्वाद, सदैव मिला है माँ का
(72.) कोई तो समझाइये
कोई तो समझाइये, तनिक हमें भी मित्र
नई कला के नाम पर, आड़े-टेड़े चित्र
आड़े-टेड़े चित्र, पहेली-सी बन जाते
समझो इनको लाख, किसी की समझ न आते
महावीर कविराय, भ्रष्ट जिसकी मति होई
पागलखाने जाय, कला कहता जो कोई
(73.) सच्चाई वा धर्म को
सच्चाई वा धर्म को, कोई सका न काट
चाहे गोली मारकर, लोग उतारें घाट
लोग उतारें घाट, शहीद हुए थे बापू
सुकरात पिए ज़हर, सत्य को मारा चाकू
महावीर कविराय, बना है वक्त कसाई
निर्ममता के साथ, छिपी कुछ पल सच्चाई
(74.) तोड़ी कच्ची आमियाँ
तोड़ी कच्ची आमियाँ, चटनी लई बनाय
चटकारे ले तोहरा, प्रेमी-प्रीतम खाय
प्रेमी-प्रीतम खाय, सखी सुन-सुन मुस्काती
और कहूँ क्या तोय, लाज से मैं मर जाती
महावीर कविराय, राम बनाय हर जोड़ी
क्यों इतनी स्वादिष्ट, आमियाँ तूने तोड़ी
(75.) जनता की यह मांग है
जनता की यह मांग है, जनहित में हो नीति
त्यागो भ्रष्टाचार अब, करो राष्ट्र से प्रीति
करो राष्ट्र से प्रीति, राष्ट्र का ही हित करना
जियें राष्ट्र के हेतु, राष्ट्र के ही हित मरना
महावीर कविराय, देश विकसित तब बनता
अपने सब अधिकार, कर्म पहचाने जनता
(76.) हानि-लाभ, जीवन-मरण
हानि-लाभ, जीवन-मरण, मान और अपमान
सब विधाता ने रचा, बेबस है इंसान
बेबस है इंसान, न कर्म लेख मिट पाये
कीजै लाख उपाय, न राह समझ कुछ आये
महावीर कविराय, लूट ले कोई उपवन
समझो तुम यह बात, मात्र हानि-लाभ जीवन
(77.) नौकर-चाकर छोड़कर
नौकर-चाकर छोड़कर, चले द्वारकानाथ
दाता के दरबार में, पहुंचे खाली हाथ
पहुंचे खाली हाथ, बने अब नौकर मालिक
कुछ दिन करके ऐश, चले वो भी दर खालिक
महावीर कविराय, मिले क्या कुछ भी पाकर
इक दिन जाना तोय, छोड़के नौकर-चाकर
(78.) सुख-दुःख लगा हुआ यहाँ
सुख-दुःख लगा हुआ यहाँ, हर मानव के साथ
दोनों मन के मीत हैं, छोड़े कभी न हाथ
छोड़े कभी न हाथ, मिले वो बारी-बारी
ज्ञानी जो इंसान, निभाता इनसे यारी
महावीर कविराय, प्रणाम कीजिये झुक-झुक
दोनों भाव विशेष, साथ हैं तेरे सुख-दुःख
(79.) दुःख में आँसू संग हैं
दुःख में आँसू संग हैं, तो सुख में मुस्कान
ढ़लकर सुख-दुःख में बने, मानव की पहचान
मानव की पहचान, सम्पदा बड़ी अनूठी
अनुभव की यह खान, नगों पर जड़ी अंगूठी
महावीर कविराय, फले-फूले नर सुख में
कभी न छोड़े साथ, संग है आँसू दुःख में
(80.) सागर भी छोटा लगे
सागर भी छोटा लगे, इतने भीगे नैन
गोरी तेरी याद में, रोया हूँ दिन-रैन
रोया हूँ दिन-रैन, निकट कोई तो रहता
गले लगा कर हाय, मुझे जो अपना कहता
महावीर कविराय, आज रोये अम्बर भी
ये जग जाये डूब, लगे छोटा सागर भी
(81.) बीता है जो एक पल
बीता है जो एक पल, कभी न आये हाथ
सबसे अच्छा व्यक्ति वह, चले वक्त के साथ
चले वक्त के साथ, जीत निश्चित ही जानो
समय बड़ा बलवान, बात हरदम यह मानो
महावीर कविराय, व्यर्थ में काहे जीता
भुला उसे तत्काल, बुरा पल जो है बीता
(82.) कठपुतली का खेल है
कठपुतली का खेल है, जग में चारों ओर
धनवानों के हाथ में, दीन-दुखी की डोर
दीन-दुखी की डोर, सभी ने निर्धन लूटे
कौन करे परवाह, स्वप्न किसके हैं टूटे
महावीर कविराय, मिले अब आम न गुठली
कैसा यह संसार, दीन बनते कठपुतली
(83.) लकड़ी जीवन मृत्यु तक
लकड़ी जीवन मृत्यु तक, रहती सबके साथ
बचपन में था पालना, अंत चिता के हाथ
अंत चिता के हाथ, समझ पगले सच्चाई
बनते भवन-दुकान, काम लकड़ी ही आई
महावीर कविराय, टाँग जब-जब भी अकड़ी
लाठी बनकर साथ, निभाती आई लकड़ी
(84.) बोलो मत वाणी ग़लत
बोलो मत वाणी ग़लत, कटुक वचन हैं तीर
घाव भरे तलवार का, चाहे हो गम्भीर
चाहे हो गम्भीर, ठीक हो जाए यारो
मगर बात का घाव, नहीं भर पाता प्यारो
महावीर कविराय, हृदय में पहले तोलो
तुम्हें लगे जो ठीक, वही बातें तुम बोलो
(85.) साहस, ताकत, वीरता
साहस, ताकत, वीरता, सैना के हैं अंग
अदम्य पौरुष देखकर, दुश्मन भी हैं दंग
दुश्मन भी हैं दंग, सामने काल अड़ा है
ज़ख़्मी हुआ शरीर, रणवीर मगर खड़ा है
महावीर कविराय, नाम है जिसका भारत
वीर एक से एक, परख ले, साहस, ताकत
(86.) उतरायण में सूर्य है
उतरायण में सूर्य है, तीर्थ बना है देश
माँ गंगा की गोद में, करते स्नान विशेष
करते स्नान विशेष, लोहड़ी, ओणम, पोंगल
चाहे नाम अनेक, चार सू छाये मंगल
मकर राशि में सूर्य, मिला जैसे नारायण
शत-शत करो प्रणाम, भगवान हैं उतरायण
(87.) सन पचास लागू हुआ
सन पचास लागू हुआ, अपना शासन तन्त्र
पर्व छब्बीस जनवरी, कहलाया गणतन्त्र
कहलाया गणतन्त्र, विधान बना भारत का
है अधिकार समान, आदमी वा अौरत का
महावीर कविराय, खूब उत्साहित जन-जन
हुआ है फलीभूत, पचास बड़ा ही शुभ सन
(88.) मन प्रसन्नचित हो गया
मन प्रसन्नचित हो गया, देख हरा उधान
फूल खिले हैं चार सू, बढ़ा रहे हैं शान
बढ़ा रहे हैं शान, पवन फैलाये खुशबू
भौरे आये पास, बाग़ में छाया जादू
महावीर कविराय, ग़ज़ब लागे है मधुबन
हरियाली का साथ, मुस्कुराये है तन-मन
(89.) सूखा-बाढ़, अकाल है
सूखा-बाढ़, अकाल है, कुदरत का आक्रोश
किया प्रदूषण अत्यधिक, मानव का है दोष
मानव का है दोष, धरा पे संकट छाया
शाप बना विज्ञान, विकास कहाँ हो पाया
महावीर कविराय, लाचार प्यासा-भूखा
झेल रहे हम मार, कभी बाढ़, कभी सूखा
(90.) माँ पर अब संकट नहीं
माँ पर अब संकट नहीं, कहता बुद्धू राम
ज़िंदा थी बीमार थी, मरकर है आराम
मरकर है आराम, नहीं कुछ रोग सताए
माँ है अब तस्वीर, रात-दिन बस मुस्काए
महावीर कविराय, बड़ा सकून है मरकर
मस्त है बुद्धूराम, नहीं संकट अब माँ पर
महावीर उत्तरांचली
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