Powered By Blogger

Saturday 15 December 2012


ग़ज़लें 


(1)
"आपने क्या कभी ख़याल  किया" 
रोज़ मुझसे नया सवाल किया 

ज़िन्दगी  आपकी बदौलत थी 
आपने कब मिरा ख़याल किया

राज़े-दिल कह न पाए हम लेकिन 
दिल ने इसका बहुत मलाल किया 

ज़ोर ग़ैरों पे जब चला न कोई 
आपने मुझको ही हलाल किया

है "महावीर" शेर खूब तिरे
लोग कहते हैं क्या कमाल किया


(2)
हार किसी को भी स्वीकार नहीं होती 
जीत मगर प्यारे हर बार नहीं होती 

एक बिना दूजे का, अर्थ नहीं रहता   
जीत कहाँ पाते यदि  हार  नहीं होती 

बैठा रहता मैं भी एक किनारे पर 
राह अगर मेरी दुशवार  नहीं होती 

डर मत लह्रों से, आ पतवार उठा ले 
बैठ किनारे, नैया पार नहीं होती 

खाकर रूखी-सूखी, चैन से सोते सब 
इच्छाएं यदि लाख-udhaar  नहीं होती 

(२)
बाज़ार मैं बैठे मगर बिकना नहीं सीखा 
हालात के आगे कभी झुकना नहीं सीखा
 
तन्हाई मैं जब छू गई यादें मिरे दिल को
फिर आंसुओं ने आँख मैं रुकना नहीं सीखा

फिर आईने को बेवफा के रूबरू रक्खा 
मैंने वफ़ा की लाश को ढकना नहीं सीखा

जब चल पड़े मंजिल की जानिब ये कदम मेरे 
फिर आँधियों के सामने रुकना नहीं  सीखा  

~~~~
शायर महावीर उत्तरांचली