मुझे
न कोई पा सके,
चीज़
बड़ी मैं ख़ास।
छोटी-सी है देह पर, मेरे वस्त्र पचास।
खाने
की इक चीज़ हूँ,
मैं
हूँ सबसे ख़ास //
२.
//
लम्बा-चौड़ा ज़िक्र क्या, दो आखर का नाम।
दुनिया
भर में घूमता,
शीश
ढ़कूँ यह काम //
३.
//
विश्व के किसी छोर में, चाहे हम आबाद।
रख
सकते हैं हम उसे,
देने
के भी बाद //
४.
//
वो ऐसी क्या चीज़ है, जिसका है आकार।
देखा होगा आपने, हर जगह डगर-डगर।
घेरा है अद्भुत हरा, पीले भवन-दुकान।
उनमें
यारों पल रहे,
सब
काले हैवान //
७.
//
पानी जम के बर्फ़ है, काँप रहा नाचीज़।
पिघले
लेकिन ठण्ड में,
अजब-ग़ज़ब
क्या चीज़ //
८.
//
मैं हूँ खूब हरा-भरा, मुँह मेरा है लाल।
नकल
करूँ मैं आपकी,
मिले
ताल से ताल //
९.
//
सोने की वह चीज़ है, आती सबके काम।
महंगाई
कितनी बढ़े,
उसके
बढ़े न दाम //
१०.
//
नाटी-सी वह बालिका, वस्त्र हरे, कुछ लाल ।
खा
जाए कोई उसे,
मच
जाए बवाल //
११.
//
अंग-रूप है काँच-का, रंग सभी अनमोल।
आऊँ
काम श्रृंगार के,
काया
मेरी गोल //
१२.
//
अद्भुत हूँ इक जीव मैं, कोई पूंछ, न बाल।
बैठा
करवट ऊँट की,
मृग
सी भरूँ उछाल //
१३.
//
बिन खाये सोये पिए, रहता सबके द्वार।
तनकर बैठा नाक पे, खींचे सबके कान।
उसका
वजूद काँच का,
देना
इसपर ध्यान //
१५.
//
सर भी उसका पूंछ भी, मगर न उसके पाँव।
फिर
भी दिखे नगर-डगर,
गली-मुहल्ला-गाँव
//
१६.
//
आ धमके वो पास में, लेकर ख़्वाब अनेक।
दुनिया
भर में मित्रवर,
शत्रू
न उसका एक //
१७.
//
पूंछ कटे तो जानकी, शीश कटे तो यार।
बीच
कटे तो खोपड़ी,
नई
पज़ल तैयार //
१८.
//
तेज़ धूप-बारिश खिले, देख छाँव मुरझाय।
अजब-ग़ज़ब
वो फूल है,
काम
सभी के आय //
१९.
//
गोरा-चिट्टा श्वेत तन, हरी-भरी है पूँछ।
समझ
न आये आपके,
तो
कटवा लो मूँछ //
२०.
//
दरिया है पानी नहीं, नहीं पेड़ पर पात।
दुनिया
है धरती नहीं,
बड़ी
अनोखी बात //
२१.
//
मुझे
न कोई खो सके,
रहती
सबके पास //१.
//
छोटी-सी है देह पर, मेरे वस्त्र पचास।
लम्बा-चौड़ा ज़िक्र क्या, दो आखर का नाम।
विश्व के किसी छोर में, चाहे हम आबाद।
वो ऐसी क्या चीज़ है, जिसका है आकार।
चाहे
जितना ढ़ेर हो,
तनिक
न उसका भार //
५.
//
देखा होगा आपने, हर जगह डगर-डगर।
हरदम
ही वो दौड़ता,
कभी
न चलता मगर //
६.
//
घेरा है अद्भुत हरा, पीले भवन-दुकान।
पानी जम के बर्फ़ है, काँप रहा नाचीज़।
मैं हूँ खूब हरा-भरा, मुँह मेरा है लाल।
सोने की वह चीज़ है, आती सबके काम।
नाटी-सी वह बालिका, वस्त्र हरे, कुछ लाल ।
अंग-रूप है काँच-का, रंग सभी अनमोल।
अद्भुत हूँ इक जीव मैं, कोई पूंछ, न बाल।
बिन खाये सोये पिए, रहता सबके द्वार।
ड्यूटी
देता रात-दिन,
छुट्टी
ना इतवार //
१४.
//
तनकर बैठा नाक पे, खींचे सबके कान।
सर भी उसका पूंछ भी, मगर न उसके पाँव।
आ धमके वो पास में, लेकर ख़्वाब अनेक।
पूंछ कटे तो जानकी, शीश कटे तो यार।
तेज़ धूप-बारिश खिले, देख छाँव मुरझाय।
गोरा-चिट्टा श्वेत तन, हरी-भरी है पूँछ।
दरिया है पानी नहीं, नहीं पेड़ पर पात।
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(1) परछाई
/ (2) प्याज
/ (3) टोपी
/ (4) वचन
/ (5) अक्षर
/ (6) इंजन
/ (7) सरसों
/ (8) मोमबत्ती
/
(9) तोता
/ (10) चारपाई
/ (11) मिर्च
/ (12) चूड़ियाँ
/ (13) मेंढ़क
/ (14) ताला
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/
(16) साँप
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(नक़्शा)